Thursday 22 December 2011

जनता बड़ी या संसद

हमने इन्हें बनाया हमसे, बड़े नहीं यह लगते।
बड़ी नहीं जनता से संसद, ऐसा हम कह सकते।।
जन से जन को जन के द्वारा, बनती है यह संसद।
इन नेताओं की लूटों को, अब न हम सह सकते।।
संसद है सर्वोच्च तभी तक, जब तक जन की माने।
जनता से विपरीत चले जो, वह संसद ढह सकते।।
संसद में कई हैं अपराधी, कई हैं चोर लुटेरे।
संसद नहीं जेल भिजवाओ, अब न चुप रह सकते।।

12 comments:

  1. बहुत अच्छा लगा आपका ये अंदाज़ !
    मेरे ब्लॉग पे आकर उत्साहित करने के लिये
    बहुत - बहुत धन्यबाद आपका !
    इसी तरह आगे भी अपना साथ बनाये रखियेगा !
    आभार !

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  2. मनीष जी मेरे अंदाज की सराहना करने के लिये हृदय से आभार।

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  3. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !

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  4. karta bhi wahi, dharta bhi wahi hain..lekin han yadi janta uthkar jaag jaay to phir naksha badalne mein samay kam lagega..
    badiya prastuti..
    aapko sparwar navvarsh kee haardik shubhkamnayen

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  5. आदरणीय कविता जी,
    उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभार। ऐसी ही कृपा आगे भी बनाये रखिये।

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  6. डॉ.साहब मेरे ब्लॉग पर प्रथम आगमन पर हार्दिक स्वागत है।
    सराहना के लिये आभार, आगे भी ऐसी ही कृपा बनाये रखिये।

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  7. This comment has been removed by the author.

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  8. संसद है सर्वोच्च तभी तक, जब तक जन की माने।
    जनता से विपरीत चले जो, वह संसद ढह सकते।।
    जै अन्ना !जै भारत !जै जन मन ,जन जन .
    LUPIN LTD BNAA RAHI HAI यह नुश्खा .

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    1. वीरूभाई सादर प्रणाम,
      प्रोत्साहित करने वाली प्रतिक्रिया के लिये
      आपका बहुत बहुत आभार.......

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  9. गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....

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    1. प्रतिक्रिया देने के लिये आभार.....

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